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सर्वेक्षण के प्रकार
सर्वेक्षण  सर्वेक्षण की स्थिति

विस्तृत मृदा सर्वेक्षण

विस्तृत  मृदा सर्वेक्षण का  उद्देश्य भू संपत्ति  मानचित्र  या बड़े पैमाने पर हवाई चित्र का उपयोग करते हुए प्राथमिकता  क्षेत्र में  मृदा और भूमि की विशेषताओं  के बारे में जानकारी  देना है।  यह मृदा के क्रमबद्ध  विस्तृत  अध्ययन से संबंधित है, जिससे क्षेत्र में   मृदा के  आकारिकी परीक्षण और 1:15000 पैमाने का उपयोग करते हुए   मानचित्रीकरण या बड़े    हवाई,  भू संपत्ति  मानचित्र के उपयोग के साथ  साथ      मृदा    प्रयोगशाला  में मृदा  नमूने के  विश्लेषण तथा मानचित्रकारी  प्रयोगशाला  में मानचित्र तैयार करना है।   विस्तृत  मृदा सर्वेक्षण में चयनित अति उच्च और  उच्च  प्राथमिकता  वाले सूक्ष्म वाटरशेड लिए जाते हैं, जो कि मृदा आधारित विस्तृत आंकड़े प्राप्त करने के लिए ग्रामीण स्तर पर योजना के कार्यान्वयन के लिए पूर्व अपेक्षित है।

मृदा सर्वेक्षण से प्राप्त आंकडों का  भू- क्षमता या  विभिन्न उद्देश्य परक कार्यों में किया जा सकता है।  यह निम्नलिखित जानकारी देती है, जो किसी भी भूमि से संबंधित विकास कार्यक्रम के लिए अति आवश्यक हैं.1) मृदा का उपयुक्त निदान  2)  वैज्ञानिक भू- उपयोग योजना बनाने में  3) रासायनिक उर्वरकों के समुचित उपयोग के लिए भूमि सुधार  4) मृदा, भूमि, फसल, पानी और पोषक तत्व प्रबंधन में 5) कृषक समुदाय के लिए जानकारी का प्रचार - प्रसार करने के लिए  मृदा स्वास्थ्य कार्ड बनाने में 6) भूमि सूचना प्रणाली के विकास में 7) भूमि संसाधनों के अधिकतम उपयोग में [विवरण] .

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                                            मृदा संसाधन मानचित्रण

 

मृदा संसाधन मानचित्रण के उद्देश्य:

1.  टोपोशीटस और उपग्रह सुदूर संवेदन डेटा का उपयोग कर 1:50000 पैमाने पर मृदा मानचित्र तैयार करना

2.  मृदा संसाधनों की प्रकृति,  सीमा और क्षमता पर जिला आधारित जानकारी तैयार करना

3.  भू- सर्वेक्षण के लिए आवश्यक कम समय और  कम से कम जनशक्ति के उपयोग की एक पद्धति विकसित करना

4.  एक समान निर्देशिका का उपयोग कर मृदा मानचित्रण इकाइयों को चित्रित करना

मृदा संसाधन मानचित्रण की  क्रियाविधि
     मृदा संसाधन के लिए सुदूर संवेदन तकनीक और डिजिटल डेटाबेस का उपयोग कर मानचित्रण और डिजिटल डाटाबेस तैयार करना, जिसके लिए निम्न चरणों को शामिल किया गया है-

1.  निर्देशिका  का विकास

2.  आधार मानचित्र तैयार करना

3.  भू-आकृति / भूवैज्ञानिक सीमा का चित्रण

4.  भौगोलिक इकाइयों का चित्रण

5.  ढलान सीमा का चित्रण

6.  भू - उपयोग सीमा का चित्रण

7.  पूर्व क्षेत्र निर्वचन

8.  नमूना स्टेप्स का चयन

9.  भू क्षेत्र जांच एवं क्षेत्र  कार्य

10  अंतिम निर्वचन और मानचित्र प्रमाणीकरण को अंतिम रूप देना.[
विवरण]

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तीव्र प्राथमिक सर्वेक्षण

तीव्र प्राथमिक सर्वेक्षण के उद्देश्य जलग्रहण क्षेत्र में 1:50 K. पैमाने पर सीमांकन और वाटरशेड प्राथमिकता की पहचान करके भू-आकृति, ढलान, मृदा की गहराई, सतही कणाकार, भू- उपयोग, भू-आच्छादन, सतही अवस्था और वर्तमान प्रबंध प्रक्रियाओं की जानकारी प्रदान करना है. यह तलछट उपज सूचकांक/ अपवाह उत्पादन क्षमता के आधार पर 1:50 K पैमाने पर जलग्रहण क्षेत्र में अति उच्च और उच्च  प्राथमिकता वाले सूक्ष्म  वाटरशेड  की पहचान तथा सीमांकन   करता है    भारती मृदा एवं भू- उपयोग  सर्वेक्षण ने  जलग्रहण क्षेत्रों में  सूक्ष्म  वाटरशेड की पद्धति विकसित की है , जिससे कि  मृदा और जल संरक्षण की योजना को चयनित प्रक्रिया एवं  चरणबद्ध तरीके से किया जा सके। सर्वेक्षण के उक्त परिणामों को  केन्द्र और राज्य सरकारों द्वारा मृदा और जल संरक्षण  योजनाओं को   तैयार करने में प्रयुक्त  किया जाता है यह निम्नलिखित जानकारी प्रदान करती है, जिससे कि योजना बनाने की प्रक्रिया उपादेय हो  1) वाटरशेड प्राथमिकता विकास करके  बांधों का तलछट रोकना/जलाशयो से कृषि उत्पादन बढ़ाना और नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र को बहाल करना 2) जलग्रहण क्षेत्र में मृदा और भू-विशेषताओं का व्यापक स्तर पर तीव्र अपरदन मानचित्रण और मृदा की प्रत्येक इकाई के विषयगत मानचित्र का सृजन करना 3)  वाटरशेड प्राथमिकता का मृदा और भूमि संबंधी जानकारी के लिए किसी भी योजनाओं के उद्देश्यों के आधार पर उपयोग करना 4) प्रत्येक तीव्र अपरदन मानचित्रण इकाई  प्राकृतिक स्थान के साथ जुड़ा हुआ है और यह विकास योजना के उद्देश्यों के लिए अलग पारिस्थितिकी - इकाई के रूप में माना जा सकता है 5) गैर कृषि प्रयोजनों अर्थात सड़क और सीवर लाइन के निर्माण में कचरे को निपटाने के लिए उपयुक्त स्थल चयन, आदि के लिए डाटाबेस का अनुप्रयोग किया जा सकता है.[विवरण]

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                                              भूमि क्षरण मानचित्रण
भू- क्षरण मानचित्रण का उद्देश्य  सुदूर संवेदन तकनीक का उपयोग  करते हुए 1:50,000 पैमाने   पर यथार्थपरक  और वैज्ञानिक  सूचना प्राप्त करना है   भू- क्षरण  के  विकास में उनके उपयुक्त  प्रबंधन,  भूमि सुधार,  उनकी प्रकृति, विस्तार,  स्थानिक वितरण और समस्याओं से संबंधित  विशेष जानकारी शामिल हैं।  योजना लागू करने के   उद्देश्य से भू- क्षरण पर आधारित सम्यक एवं यथार्थपरक डाटा की आवश्यकता होती है।  यह  वैज्ञानिक  मानचित्रण से ही संभव है।  मानचित्रण  1:50,000 पैमाने पर सुदूर संवेदन तकनीक के आधार पर किया जाता है। आई आर एस- एल आई एस एस-।। डाटा आधारित एफ सी सी (बैंड 2,3,4) के पूर्व क्षेत्र निर्वचन के आधार पर   वर्णक्रमीय  विशिष्टताओं की पहचान, वास्तविक  क्षेत्र सर्वेक्षण तथा बाद में किए जाने वाले  क्षेत्र निर्वचन के साथ साथ  यादृच्छिक क्षेत्र की जाँच तथा  मानचित्र को अंतिम रुप दिया जाता है। मानचित्रण की  अवधारणा   चार स्तरीय प्रणाली है जिसमें  सर्वे ऑफ इंडिया का स्थलाकृतिक मानचित्र  से प्राप्त मुख्य  भू- उपयोग सीमाओं का चित्रण और बाद में सुदूर संवेदन डेटा को अद्यतन करना शामिल है। इसमें विभिन्न  प्रकार के भू- क्षरण और भू-क्षरण की अधिकता शामिल  हैं।भू- क्षरण मानचित्र निर्देशिका विकसित की गई है, जिसमें भू- क्षरण के  कारक तत्व, जैसे वायु एवं जल अपरदन, क्षारिता, जल संभरण, झूम खेती, खनन  आदि शामिल हैं। क्रमिक मानचित्रण की  निर्देशिका निर्माण की 4 घटक हैं- 1) क्षरण के प्रकार 2) क्षरण की अधिकता 3) प्रमुख भू-आकृतियां 4) प्रमुख भू-उपयोग. [विवरण] 
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